परमात्मा का कुत्ताबहुत-से लोग
यहाँ-वहाँ सिर लटकाए बैठे थे जैसे किसी का मातम करने आए हों। कुछ लोग अपनी
पोटलियाँ खोलकर खाना खा रहे थे। दो-एक व्यक्ति पगडिय़ाँ सिर के नीचे रखकर
कम्पाउंड के बाहर सडक़ के किनारे बिखर गये थे। छोले-कुलचे वाले का रोज़गार गरम
था, और कमेटी के नल
के पास एक छोटा-मोटा क्यू लगा था। नल के पास कुर्सी डालकर बैठा अर्ज़ीनवीस
धड़ाधड़ अर्ज़ियाँ टाइप कर रहा था। उसके माथे से बहकर पसीना उसके होंठों पर आ
रहा था, लेकिन उसे
पोंछने की फुरसत नहीं थी। सफ़ेद दाढिय़ों वाले दो-तीन लम्बे-ऊँचे जाट, अपनी लाठियों पर झुके
हुए, उसके खाली होने
का इन्तज़ार कर रहे थे। धूप से बचने के लिए अर्ज़ीनवीस ने जो टाट का परदा लगा
रखा था, वह हवा से उड़ा
जा रहा था। थोड़ी दूर मोढ़े पर बैठा उसका लडक़ा अँग्रेज़ी प्राइमर को रट्टा लगा
रहा था-सी ए टी कैट-कैट माने बिल्ली; बी ए टी बैट-बैट माने बल्ला; एफ ए टी फैट-फैट माने मोटा.......। कमीज़ों के आधे बटन
खोले और बगल में फ़ाइलें दबाए कुछ बाबू एक-दूसरे से छेडख़ानी करते, रजिस्ट्रेशन ब्रांच से
रिकार्ड ब्रांच की तरफ जा रहे थे। लाल बेल्ट वाला चपरासी, आस-पास की भीड़ से उदासीन, अपने स्टूल पर बैठा मन
ही मन कुछ हिसाब कर रहा था। कभी उसके होंठ हिलते थे, और कभी सिर हिल जाता था। सारे कम्पाउंड में
सितम्बर की खुली धूप फैली थी। चिडिय़ों के कुछ बच्चे डालों से कूदने और फिर ऊपर
को उडऩे का अभ्यास कर रहे थे और कई बड़े-बड़े कौए पोर्च के एक सिरे से दूसरे
सिरे तक चहलक़दमी कर रहे थे। एक सत्तर-पचहत्तर की बुढिय़ा, जिसका सिर काँप रहा था
और चेहरा झुर्रियों के गुंझल के सिवा कुछ नहीं था, लोगों से पूछ रही थी कि वह अपने लडक़े के
मरने के बाद उसके नाम एलाट हुई ज़मीन की हकदार हो जाती है या नहीं........? अन्दर हॉल कमरे
में फ़ाइलें धीरे-धीरे चल रही थीं। दो-चार बाबू बीच की मेज़ के पास जमा होकर चाय
पी रहे थे। उनमें से एक दफ़्तरी कागज़ पर लिखी अपनी ताज़ा ग़ज़ल दोस्तों को सुना
रहा था और दोस्त इस विश्वास के साथ सुन रहे थे कि वह ग़ज़ल उसने 'शमा' या 'बीसवीं सदी' के किसी पुराने अंक में
से उड़ाई है। "अज़ीज़ साहब,
ये शेअर आपने आज ही कहे
हैं, या पहले के कहे
हुए शेअर आज अचानक याद हो आए हैं?" साँवले चेहरे और घनी मूँछों वाले एक बाबू ने बायीं आँख को
ज़रा-सा दबाकर पूछा। आस-पास खड़े सब लोगों के चेहरे खिल गये। "यह बिल्कुल
ताज़ा ग़ज़ल है," अज़ीज़ साहब ने
अदालत में खड़े होकर हलफिया बयान देने के लहज़े में कहा, "इससे पहले भी इसी वज़न
पर कोई और चीज़ कही हो तो याद नहीं।" और फिर आँखों से सबके चेहरों को
टटोलते हुए वे हल्की हँसी के साथ बोले, "अपना दीवान तो कोई रिसर्चदां ही मुरत्तब
करेगा.......।" एक फरमायशी
कहकहा लगा जिसे 'शी-शी' की आवाज़ों ने बीच में
ही दबा दिया। कहकहे पर लगायी गयी इस ब्रेक का मतलब था कि कमिश्नर साहब अपने कमरे
में तशरीफ़ ले आये हैं। कुछ देर का वक्फा रहा, जिसमें सुरजीत सिंह वल्द गुरमीत सिंह की
फ़ाइल एक मेज़ से एक्शन के लिए दूसरी मेज़ पर पहुँच गयी, सुरजीत सिंह वल्द गुरमीत सिंह मुसकराता हुआ
हॉल से बाहर चला गया, और जिस बाबू की
मेज़ से फ़ाइल गयी थी, वह पाँच रुपये
के नोट को सहलाता हुआ चाय पीने वालों के जमघट में आ शामिल हुआ। अज़ीज़ साहब अब
आवाज़ ज़रा धीमी करके ग़ज़ल का अगला शेअर सुनाने लगे। साहब के कमरे
से घंटी हुई। चपरासी मुस्तैदी से उठकर अन्दर गया, और उसी मुस्तैदी से वापस आकर फिर अपने स्टूल
पर बैठ गया। चपरासी से
खिड़की का पर्दा ठीक कराकर कमिश्नर साहब ने मेज़ पर रखे ढेर-से काग़ज़ों पर एक
साथ दस्तख़त किए और पाइप सुलगाकर 'रीडर्ज़ डाइजेस्ट' का ताज़ा अंक बैग से निकाल लिया। लेटीशिया
बाल्ड्रिज का लेख कि उसे इतालवी मर्दों से क्यों प्यार है, वे पढ़ चुके थे। और
लेखों में हृदय की शल्य चिकित्सा के सम्बन्ध में जे.डी. रैटक्लिफ का लेख
उन्होंने सबसे पहले पढऩे के लिए चुन रखा था। पृष्ठ एक सौ ग्यारह खोलकर वे हृदय
के नए ऑपरेशन का ब्यौरा पढऩे लगे।
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परमात्मा का कुत्ता (मोहन राकेश)
April 30, 2022
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